आयुर्वेदिक गुरु ने शुरू किया हस्ताक्षर अभियान

स्वास्थ्य का अधिकार आयुर्वेदिक गुरु ने शुरू किया हस्ताक्षर अभियान लखनऊ। प्रसिद्ध आयुर्वेद विशेषज्ञ गुरु मनीष जो 1997 से ही आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार में जुटे हैं ने एक अद्वितीय ऑनलाइन याचिका के वेब पोर्टल राइट 2 हैल्थ इन का अनावरण किया, जो सभी भारतीयों और यहां तक कि विदेशों में भी लोगों को स्वास्थ्य का अधिकार दिलाने में मददगार साबित होगा। ऑनलाइन पिटीशन का वेब.पोर्टल आचार्य मनीष ने नोएडा में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान प्रदर्शित किया। राइट टू हेल्थ अब आपके हाथ विश्व का स्वास्थ्य नामक एक अभिनव नाम वाली ऑनलाइन पिटीशन के लांच की घोषणा के साथ ही, आचार्य मनीष ने शुद्धि आयुर्वेद द्वारा शुरू किये गये राइट टू हैल्थ अभियान के बारे में बात की। शुद्धि आयुर्वेद भारत में आयुर्वेद को चिकित्सा की सर्वप्रथम उपचार पद्धति के रूप में बढ़ावा देने के लिए गुरु मनीष द्वारा स्थापित एक संगठन है। शुद्धि आयुर्वेद का कॉर्पोरेट मुख्यालय चंडीगढ़ के निकट जीरकपुर में है। पूरे भारत में शुद्धि आयुर्वेद के 150 से अधिक सेंटर कार्यरत हैं। गुरु मनीष ने कहा संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार सभी व्यक्तियों को जीवन का अधिकार है और इस अधिकार को श्स्वास्थ्य के अधिकारश् के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसी तरह सेए डब्ल्यूएचओ की स्वास्थ्य की परिभाषा कहती है. स्वास्थ्य पूर्ण शारीरिकए मानसिक और सामाजिक भलाई की एक अवस्था हैए न कि केवल बीमारी की अनुपस्थिति। इनके अनुसार श्स्वास्थ्य का अधिकारश् प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। हम ऑनलाइन पिटीशन के जरिये लोगों को जागरूक करना चाहते हैं कि राइट टू हैल्थ केवल आयुर्वेद के माध्यम से ही संभव हैए क्योंकि आयुर्वेद की चरक संहिता के अनुसार आयुर्वेद का मकसद एक स्वस्थ शरीर को बीमारी से मुक्त रखना है और रोगग्रस्त शरीर से बीमारी को जड़ से हटाना है। मनीष ने कहा राइट टू हैल्थ नामक ऑनलाइन पिटीशन का उददेश्य इस कांसेप्ट को प्रचारित करके स्वस्थ भारत का लक्ष्य प्राप्त करना है। बदले में यह भारतीयों को सशक्त करेगा और वे सामूहिक रूप से भारत सरकार से आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए कह सकते हैं। राष्ट्रीय सर्वेक्षण संगठन के अनुसार 90 प्रतिशत आबादी अभी भी एलोपैथिक चिकित्सा की पक्षधर है और यह सही समय है जब भारत आयुर्वेद पर ध्यान केंद्रित करे। भारत सरकार की वोकल फॉर लोकल थीम को ध्यान में रखते हुए आयुर्वेद को प्रचारित किया जाना चाहिए न कि एलोपैथी को, जो एक विदेशी चिकित्सा पद्धति है, जिसे पश्चिमी देशों द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है। दवा उद्योग समूह भारतीयों के स्वास्थ्य की कीमत पर भारी मुनाफा कमा रहे हैं, क्योंकि इन दवाओं के कई दुष्प्रभाव होते हैं और इनमें किसी बीमारी को जड़ से दूर करने का कोई इलाज नहीं है। राइट टू हैल्थ अभियान शुरू करने और ऑनलाइन पिटीशन शुरू करने के पीछे आइडिया यह भी था कि आयुर्वेद को उसका सही स्थान दिलवाने के लिए सरकार को प्रभावित किया जाए। मनीष ने कहा हालांकि डब्ल्यूएचओ ने भारत में एक पारंपरिक चिकित्सा केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया है और भारत सरकार द्वारा आयुर्वेदिक चिकित्सकों को कुछ प्रकार की सर्जरी करने की अनुमति देना भी एक अच्छा कदम है, परंतु आयुर्वेद के प्रति अधिकारियों के सौतेले व्यवहार को बदलने के लिए अभी बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है। आज भी एक आयुर्वेदिक चिकित्सक को एक साधारण से चिकित्सा प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर करने का अधिकार नहीं है और आयुष्मान भारत योजना के तहत परिवार को 5 लाख रुपये का सुरक्षा कवर केवल एलोपैथिक इलाज के लिए है। आयुर्वेदिक अस्पतालों में भर्ती मरीजों के लिए किसी तरह का बीमा कवर उपलब्ध नही है। आयुर्वेदिक उपचार को भी बीमा योजनाओं के दायरे में लाया जाना चाहिए। इतना ही नहीं वर्ष 1897 के महामारी अधिनियम और 1954 के मैजिक रेमेडी एक्ट जैसे पुराने कानूनों के चलते, आयुर्वेदिक चिकित्सक अलग-अलग बीमारियों के लिए चमत्कारिक उपचारों के बारे में बात नहीं कर सकते। इन पुराने कानूनों को खत्म करने या इनमें जरूरी बदलाव करने की आवश्यकता है।

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