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Showing posts from May, 2020

तंबाकू को अपनी सांस न लेने दें

हुज़ैफ़ा  हर साल, तंबाकू कम से कम 8 मिलियन लोगों को मारता है 31 मई पूरे राष्ट्र में विश्व तंबाकू दिवस के रूप में मनाया जाता है। लोगों के बीच तम्बाकू के उपयोग में वृद्धि और फेफड़ों के स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर,  डॉ.  हर्षवर्धन  हर्षवर्धन आत्रेय, मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट, अपोलो मेडिक्स, लखनऊ   ने अपनी विचार साँझा करते हुए बताया कि ,  “हर साल, तंबाकू कम से कम 8 मिलियन लोगों को मारता है। तम्बाकू धूम्रपान क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) का प्रमुख कारण है, ऐसी स्थिति जिसमें फेफड़ों में मवाद से भरे बलगम का निर्माण होता है, जिससे दर्दनाक खांसी होती है और सांस लेने में कठिनाई होती है। सीओपीडी विकसित होने का जोखिम उन व्यक्तियों में विशेष रूप से अधिक है, जो कम उम्र में धूम्रपान शुरू करते हैं, और जो सेकंड हैंड धुएं के संपर्क में हैं, क्योंकि तंबाकू का धुआं फेफड़ों के विकास को काफी धीमा कर देता है। तम्बाकू अस्थमा को भी बढ़ाता है, जो रोज़मर्रा गतिविधि को प्रतिबंधित करता है और विकलांगता में योगदान देता है। सीओपीडी की प्रगति को धीमा करने और अस्थमा के लक्षणों में स

स्मार्ट मीटरों ने उत्तर प्रदेशको लॉकडाउन में 20 प्रतिशत अधिक राजस्व

huzaifa उर्जा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत कार्यरत पीएसयू (सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम) एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज़ लिमिटेड (ईईएसएल) को भारत में स्मार्ट मीटरिंग प्रोग्राम लागू करने के लिए नियुक्त किया गया है। उत्तर प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है,जहां 12 शहरों में करीब 9.8 लाख मीटरों की संस्थापना के साथ ही बड़े पैमाने पर इस प्रोग्राम को लागू किया जा चुका है। जल्द ही राज्य के 8 अन्य शहरों में भी इसे शुरू करने की योजना है। उत्तरप्रदेश में स्मार्ट मीटरों का प्रयोग डिस्कॉम तथा उपभोक्ताओं दोनों के लिए फायदेमंद है। डिस्कॉम इनके चलते हर महीने औसतन 20 प्रतिशत अधिक राजस्व प्रति उपभोक्ता कमा रहे हैं, जो लगभग275/ रु है, इसी तरह जहां स्मार्ट मीटर सैचुरेशन है, 50 प्रतिशत वहां एटी एवं सी घाटों में भी औसत 5 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है, भुगतान नहीं करने वाले उपभोक्ताओं के परिसर में रिमोट लोकेशन से बिजली काटने की सुविधा से भी डिस्कॉम का राजस्व बढ़ा है,और साथ ही ऑनलाइन मॉनीटरिंग तथा बिजली खपत का पूर्वानुमान करना और स्मार्ट मीटरों के साथ छेड़छाड़ की ऑनलाइन जानकारी आदि से भी स्थिति में सुधार हुआ ह

पति-पत्नी कर रहे कोविड-19 की ड्यूटी

पति-पत्नी कर रहे कोविड-19 की ड्यूटी, बच्चों से मिलते हैं वीडियो काल पर हुज़ैफ़ा  लखनऊ। डर मुझे भी लगा फासला देख कर, पर मैं बढ़ती गई रास्ता देख कर, खुद ब खुद मेरे नजदीक आती गई, मेरी मंजिल मेरा हौसला देख कर। यह कहना है राजधानी के कानपुर रोड स्थित लोकबंधु अस्पताल की स्टाफ नर्स रंजना सिंह का जो इस समय कोरोना को परास्त करते हुए आइसोलेशन वार्ड में ड्यूटी कर रही है। रंजना के पति भी पुलिस विभाग में है और दोनों पति-पत्नी महामारी के इस दौर में घर से दूर रह कर देश सेवा कर रहे हैं। रंजना बताती है कि उनके परिवार में 15 साल की एक बेटी और 11 साल का एक बेटा है लेकिन जब कभी बच्चे मां-बाप की कमी महसूस करते हैं तब वीडियो काल के जरिए उनसे बात हो जाती है। रंजना के बुजुर्ग सास-ससुर बच्चों की देखभाल कर रहे हैं और दोनों पति-पत्नी कोविड-19 की कठिन सेवाओं का पालन कर रहे हैं। बच्चों के बारे में बताते हुए भावुक हुई स्टाफ नर्स ने कहा कि बहुत मुश्किल से बच्चों को समझाया कि कोरोना वाइरस से लड़ने के लिए माता-पिता द्वारा कर्तव्य निर्वहन अत्यंत आवश्यक है। देशवासियों से अपील करते हुए रंजना सिंह ने कहा कि कोरोना से लड़न

लाकडाउन के बाद कैसा होगा भारत

हुजैफ़़ा सड़को पर प्रवासी मजदूरों के काफिले, सुनसान सड़के, सड़को पर हूटर लगी पुलिस की गाडिय़ां, कुत्तों के झुंट शायद देश की एक वायरस से बर्दबादी की दास्ता बयां कर रहे है। हर तरफ लोगों को इस लाकडाउन में फंसे होने की भयावह तस्वीर, भूख से तड़पते परिवार, रोड एक्सीडेंट में सौकडों की मौत, प्रवास में बच्चों का जन्म और पैदल चलने वाले लोगों की दर्द भरी दास्ता जो हर एक के दिलोदिमाग पर छायी है। इसका दर्द लाकडाउन समाप्त होने के बाद भी शायद ही खत्म हो। कोविड-१९ से लड़ाई हमारा देश अपने सीमित संसाधनों से लड रहा है। कोरोना वह महामारी है जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। इससे बचाव के लिये पूरा विश्व लड़ रहा और परास्त हो रहा है। ऐसे में भारत की जंग किसी मायने में कम नहीं है। हर तरफ हाहाकार, भूखमरी, पलायन, बेरोजगारी, मंदी, उन्माद आदि के कारण लोग भयभीत है। इस बीमारी का अभी का कोई इलाज न होने के कारण भी लोग परेशान और भयभीत है। कोविड-१९ का अभी तक शायद बचाव ही इलाज है, इसीलिये सरकार इसे गंभीरता से ले रही है। इस लाकडाउन के बाद का ख्याल आते ही मन सिहर उठता है। हर तरफ बेरोजगारी, उद्योग धंधों का बंद होना, नौकर

मज़दूरों के महाप्रवास की महामारी झेलता भारत

भारत में कोरोना महामारी बनेगी या नहीं यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन मज़दूरों का पलायन महामारी बनकर कहर बरपा रहा है  ,  यह स्थापित सत्य है। इस पलायन ने देश के सत्तधीशों की कलई खोलकर रख दी है। सत्ता के संरक्षण में नौकरशाही ने देश के मज़दूरों के हितों का जो सुन्दर चित्रण किया था सब स्याह हो गया। प्रधानमंत्री मोदी का हवाई चप्पल वालों को हवाई यात्रा कराने का सपना चकनाचूर हो गया। भूख-प्यास और भय में अपने घरों की तरफ पैदल ,  रिक्शा और साइकिल से चल पड़े इन राष्ट्र निर्माताओं की चप्पलें ही टूट गयीं। अंतर्राज्यिक प्रवासी श्रमिक अधिनियम क्वारंटाइन हो गया। प्रवासी श्रमिकों के अधिकार का उल्लू कोरोना के वायरस खोजने लगा। सजा एवं दण्ड घर में सोशल डिस्टेंसिंग मनाते हुए रामायण और महाभारत से अभिभूत होने लगे। बस चल रहा था तो देश    का   अन्नदाता। उसे किसी से शिकायत नहीं थी लेकिन उनके चलने से शिकायत थी क्योंकि अंग्रेज़ी क़ानून महामारी रोग अधिनियम के तहत लॉकडाउन हो चुका था। उल्लंघन करने पर लोकसेवकों ने लोक की हड्डी तक तोड़ देने या जेल भेज देने का ब्रितानी फरमान ज़ारी कर दिया था।    पकडे जाने पर सरेआम सड़क पर बै

शराब की आर्थिक सत्ता के आगे नतमस्तक सरकारें

देश के हिन्दू ,  बौद्ध ,  जैन और इस्लाम धर्म शराब सेवन से विरत रहने की शिक्षा देतें हैं और    इसको दुःख का कारण बतातें हैं। समाज इसका विरोध करता है। हार्वर्ड स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ का मानना है कि ज्यादा शराब के कारण लीवर ,   उच्च रक्तचाप ,  हृदय सम्बन्धी बीमारी और कैंसर हो सकता है।    उसके   अनुसार अमेरिका में हिंसक अपराध के तीन मामलों में से एक में शराब की भूमिका होती है। धर्म ,  समाज   और विज्ञान के मापदंडों पर घातक शराब ,  कोरोना महामारी के दौर में भारत की अर्थव्यवस्था के लिए अमृत बन गयी है। विश्वगुरु भारत की सरकारें इस आर्थिक-अमृत को जन-जन तक पहुंचा रही हैं। रेड जोन घोषित देश की राजधानी पर भी कृपा बरस रही है। वो भी पूरे अनुशासन के साथ ,  ख्याल इतना कि निगाहबनी के लिए भारत तिब्बत सीमा पुलिस को लगा दिया। लॉकडाउन से उपजे संयम के कारण देशभक्त जनता तीन-तीन किलोमीटर लम्बी लाइन में खड़ी होकर आर्थिक-अमृत की खरीद   से देश का खज़ाना भर रही है। महंगाई का रोना रोने वाली जनता बेतहासा बढे हुए दामों पर महीने भर के शराब का इंतज़ाम कर ले रही है।   शराब के लिए इतनी दीवानगी देखकर इसके राजनीतिक महत्व