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सिद्धार्थ का पुश्तैनी रिवाल्वर नहीं ढूंढ पा रहे पुलिस और प्रशासन

पुलिस खुलेआम उड़ा रही शासनादेश का मजाक लखनऊ। मौजूदा दौर में प्रशासन इस कदर बेलगाम और बेखौफ हो गया कि उसे शासनादेश की तनिक भी परवाह नहीं है। स्टार आरटीआई एक्टिविस्ट सिद्धार्थ नारायण ने राजधानी स्थित अपने निवास पर पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि आरटीआई के माध्यम से उन्होंने अपनी पुश्तैनी सम्पत्ति को वापस पाया लेकिन उनके पैतृक शस्त्र को पुलिस ढूंढ नहीं पा रही है। सिद्धार्थ लगभग नौ महीने से लगातार पत्राचार के माध्यम से लाइसेंसी असलहे को खोजने का प्रयास कर रहे हैं। पूर्व सूचना आयुक्त हाफिज उस्मान ने सिद्धार्थ को विधिक राय देते हुए दावा दायर करने की सलाह दी वहीं पूर्व सूचना आयुक्त अरविंद सिंह बिष्ट ने परिवार द्वारा एनओसी ना दिए जाने पर ध्यान आकर्षित करवाया। पुश्तैनी रिवाल्वर का पता चलने पर सिद्धार्थ की माँ डॉक्टर मार्गेट नारायण चितिंत हुई क्योंकि गायब शस्त्र से कोई अनहोनी घटना घटित हो सकती है और इस समय रिवाल्वर की कीमत भी बहुत अधिक है। उन्होंने बताया कि सन 1870 में वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सबसे पहला शस्त्र लाइसेंस था जिसे उनके पति की मृत्यु के बाद जगदीश नारायण