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विपत्तिकाल में एकांतवास ही असली साधना

भारत एक बार फिर कोरोना नामक वायरस जनित महामारी की चपेट में है । सरकार द्वारा सम्पूर्ण देश में घोषित 21 दिन के लॉकडाउन से इसके खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है । लॉकडाउन का व्यवहारिक अर्थ कर्फ्यू है । देश के इतिहास में विदेशी आक्रमण, प्लेग, स्पेनिश फ्लू, देश का बटवारा, चीन और पकिस्तान से युद्ध, आपातकाल, श्रीमती इंदिरा गांधी और श्री राजीव गांधी की ह्त्या, सिख विरोधी दंगे, अयोध्या में विवादित ढांचा ध्वंश जैसे अनेक संकट के समय आये लेकिन देश चलता रहा । अर्थ व्यवस्था चलती रही । आज सरकार को सब कुछ बंद करना पड़ा है । कारण भी है क्योंकि अमेरिका, चीन, जापान, इटली, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे उन्नत आर्थिक और उच्च स्वास्थ्य प्रदाता देश सभी उपाय करने के बाद भी इस महामारी के आगे बेबस होकर अपने नागरिकों को रोज़ रोज़ काल के गाल में समाते देख रहे है । हमारी चुनौतियां और कठिनाईयां बहुत अधिक हैं । किसी भी संक्रामक रोग के प्रसार में जनसँख्या, जनसँख्या घनत्व, यातायात की प्रचुरता और प्रतिदिन जनसंख्या का आवागमन महत्वपूर्ण कारक हैं । भारत की जनसंख्या 137 करोड़ है जो वैश्विक जनसंख्या का 17.7% ह