पंचायत चुनाव से दूर रहेगे राजनीतिक दल

हुजैफ़ा लखनऊ। प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनाव में राजनीतिक दलों की दखल सिर्फ जिले की पंचायतों तक रहेगी। गांवों की पंचायतों से सभी राजनीतिक दल अपने को दूर रखेंगे। इसके पीछे यह माना जा रहा है कि ग्राम प्रधान के चुनाव में एक ही जाति से कई प्रत्याशी मैदान में होते हैं। ऐसे में किसी एक को प्रत्याशी बनाने या समर्थन देने में उसी जाति के तमाम लोग विरोधी हो जाएंगे। जिसका असर 22 के विधानसभा चुनावों में पड़ सकता है। राज्य में पंचायत का चुनाव कभी दलीय आधार पर नहीं हुआ है। सिर्फ जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में राजनीतिक दल खुलकर समर्थित प्रत्याशी देते रहे हैं। इससे जिस दल के सदस्य अधिक चुने जाते रहे हैं। वह दल जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने में सफल हो जाता था। बीडीसी चुनाव में सीधा दखल नहीं देने के बाद भी जब ब्लाक प्रमुख का चुनाव होता है उस समय राजनीतिक दल दांवपेंच से अपना ब्लाक प्रमुख बनाने की कोशिश करते रहे हैं। इस बार के चुनाव में भी सभी राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारी जिला पंचायत सदस्य के चुनाव तक सीमित रखा है। क्षेत्र बड़ा होने से जिला पंचायत के चुनाव में दलों की दखल होती है। जिला पंचायत सदस्य चुनाव में राजनीतिक दल इसलिए खुलकर आ जाते हैं क्योंकि पंचायत सदस्य के प्रत्येक सीट के तहत 20 से 22 ग्राम पंचायतें होती हैं। गांवों में इस चुनाव को मिनी विधायक का चुनाव भी कहा जाता है। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष व पंचायत चुनाव प्रभारी विजय बहादुर पाठक के अनुसार पार्टी ने अभी सिर्फ जिला पंचायत सदस्य के 3000 से अधिक सीटों पर ही प्रत्याशी उतारने की तैयारी की है। ग्राम प्रधान व बीडीसी सदस्य पर पार्टी चुनाव में जाएगी इस पर कोई फैसला अभी नहीं हुआ है। सपा ने भी अपनी तैयारी जिला पंचायत तक ही रखी है। सपा ने जिला पंचायत सदस्य के लिए ही प्रत्याशियों को समर्थन देने की तैयारी तक खुद को सीमित रखा है। बसपा के अंदर अभी पंचायत चुनाव को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं है। केंद्रीय नेतृत्व के दिशा निर्देशों का इंतजार हो रहा है। उम्मीद की जा रही है कि 15 जनवरी को बसपा सुप्रीमो मायावती के जन्मदिन के दिन इस संबंध में कोई फैसला होगा। ओवैसी इसी चुनाव से राज्य में पैठ बनाने की कोशिश करेंगे। यहां पर नौ छोटे दलों को जोड़कर भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने कहा उनका मोर्चा सिर्फ जिला पंचायत सदस्य के लिए प्रत्याशी देगा। ग्राम प्रधान के लिए प्रत्याशी देकर मोर्चा में शामिल दल गांव की राजनीति में भागीदार नहीं बनेंगे। यदि निर्वाचन आयोग इस चुनाव को सिंबल पर कराने की घोषणा कर देता है तो ग्राम प्रधान के चुनाव में प्रत्याशी उतारने पर विचार किया जाएगा। उन्होंने बताया पंचायत चुनाव में असदुददीन ओवैसी की पार्टी से भी जिला पंचायत सदस्य के लिए कई प्रत्याशी होंगे। बाबू सिंह कुशवाहा, कृष्णा पटेल की पार्टी के साथ मोर्चा के अन्य दलों से भी प्रत्याशी होंगे। प्रत्याशियों पर फैसला मोर्चा के सभी घटक दल लेगें। वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि गांवों की राजनीति किसी वर्चस्व की लड़ाई से कम नहीं होती है। गांवों में चुनाव जात- बिरादरी के आधार पर भी लड़ा जाता है। यहां सबसे अधिक वोटरों को रिझाने के लिये जतन किये जाते है। जो वोटरों को अपने खेमे में रिझाने में सफल हो जाता उसकी ही प्रधानी गांव में कायम हो जाती है, वैसे अगर विकास के नाम पर जिला पंचायतों का चुनाव होता तो शायद आज गांव इतने पिछड़े हुए न होते और वहां से पलायन न होता न ही ग्रामीणों को दूसरे शहरों में मजदूरी के लिये जाना पड़ता। इलाज, शिक्षा, रोजगार आदि सभी कामों के लिये ग्रामीण हमेशा शहर की ओर रुख करता है, उसे इन सब जरुरतों को गांवों में ही मुहैया कराना होगा तभी देश का सच्चा विकास हो सकेगा।

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