भाजपा बाहरी लोगों के भरोसे दोबारा सरकार बनाने का देख रही सपना   


हुजैफ़ा

लखनऊ। देश में इस समय नरेंद्र मोदी की हवा चल रही या चलाई जा रही है। यह तो आने वाला समय बतायेगा किन्तु जिस तरह से इलेक्ट्रनिक मीडिया को मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का जिम्मा मिल गया है उससे लगता है कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के पास कोई अलादीन का चिराग होगा या जादुई छडी जिससे वह तुरन्त देश की सठिया चुकी समस्याओं का हल निकाल देगें। इसीलिये आज सटटा बाजार से लेकर हर जगह मोदी और भाजपा पर लोग आंखबंद कर भाव गत चुनाव की तरह नहीं लगा रहे है। भाजपा इस समय सबसे बड़ी और तकतवर पार्टी के रुप में देखा जा रहा है। यह बात और है कि भाजपा के नेता खुद एक दूसरे की जड़े काटने और अपने वरिष्ठïों को किनारे लगाने का काम कर रहे है। यहीं वजह है कि आज तमाम राजनेता बिना हाथ पैर चलाये अपनी नैया पार करने की फि राक में भाजपा में शामिल हो रहे है। भाजपा देश का दूसरा राष्टï्रीय राजनीतिक दल होने के कारण असंतुष्टïों और महत्वांकाशी लोगों को पहली पंसद बनती जा रही है। इतना होने पर भी भाजपा अपने लोगों कार्यकर्ताओं और नेताओं पर कम भरोसा कर रही हे। जो भाजपा नेता भाजपा को यहां तक पहुंचाने के लिये संघर्ष करते रहे और लाठी-डन्डे खाये भाजपा आज उन नेताओं से अधिक दलबदलुओं पर विश्वास करते हुए उन्हें लोक सभा टिकट परोस रही है। भाजपा को सबसे अधिक उम्मीद उत्तर प्रदेश की ८० सीटों से है,ऐसा कहा भी जाता है कि जिसने उत्तर प्रदेश जीत लिया वह दिल्ली भी जीत लेगा, बावजूद इसके भाजपा के कई दिग्गज नेता प्रदेश में अपना भाग्य आजमा रहे और बहुत से नेता प्रदेश में त्रिकोणिय मुकाबलों में बुरी तरह फंसे हुए नजर आ रहे है। भाजपा प्रदेश में लगभग आधी सीटों पर बाहरी नेताओं के सहारे अपना भाग्य आजमा रही और देश की शीर्ष सत्ता पर दोबारा काबिज होने के सुहाने सपने देख रही है।   

भाजपा का दावा है कि देश में मोदी और भाजपा की लहर है, और वह देश में भाजपा की सरकार दोबारा बनाने जा रही है, तो भाजपा को अपनी हकीकत और अपने नेताओं की क्षमता पर एक बार फिर से विचार करना चाहिए। यदि भाजपा अपनी पिछली उपब्धियों, अपनी नीतियों और योजनाओं से बना रही तो फिर दलबदलुओं और जोड-तोड की राजनीति का इतना व्यापक खेल क्यों खेला जा रहा है। आज सरकार बनाने के लिये भाजपा अपने मूल उददेश्यों से भटक चुकी है। सवाल है कि यदि भाजपा ऐसे ही अपने वरिष्टïों को दरकिनार करती रही और अपनों से अधिक दूसरों पर भरोसा करती रही तो आपसी लडाई कहीं भाजपा को भारी न पड जाये। अपसी तनातनी के कारण भाजपा ने कई जीते हुए सांसदों का टिकट काटकर अपना ही विरोधी बना दिया है। भाजपा जिस तरह विज्ञापनों और सोशल मीडिया के माध्यम से दोबारा मोदी लहर बना रही वह कितना उचित होगा वह तो एक माह बाद ही पता चलेगा। वास्तव में भाजपा कुछ अधिक दिखाकर अपनी कमियां छुपाने की कोशिश कर रही है। टिकट बटंवारें से लेकर हर स्तर पर भाजपा में अपने नेताओं और पार्टी में बाहर से आये नेताओं में किस तरह मनमुटाव हो रहा वह पर्दे के पीछे से जनता के सामने आ रहा है। यह तो आने वाला समय ही बतायेगा कि भाजपा को यह बाहरी नेता कितना फायदा और कितना नुकसान पहुंचायेगें। 

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