ख़तने जैसी कुप्रथा पर प्रहार है प्रज्ञेश की फिल्म शिनाख्त

ख़तने जैसी कुप्रथा पर प्रहार करती प्रज्ञेश की फिल्म शिनाख्त

सुप्रीम कोर्ट में महिला ख़तने के लंबित मामले पर बनी फिल्म शिनाख्त
मानवाधिकार पर भारतीय स्थिति का एहसास दिलाती फिल्म शिनाख्त
हुज़ैफ़ा 
लखनऊ। एक दौर था, जब फिल्मों को ही अच्छा नही माना जाता था। फिल्मों के सार्थक सन्देश ने जहाँ फिल्मों की स्वीकार्यता बढाई, वही फिल्मों के व्यावसायिक युग की शुरुआत भी हुई। इस बदलाव ने अच्छे सन्देश या बौद्धिकता के स्तर पर फिल्मों को मौका दिया। ऐसी ही एक हालिया फिल्म है शिनाख्त जो खतना की समस्या को बेबाकी से उजागर करती है। ऐसे ही विषय पर बनी फिल्म शिनाख्त का पोस्टर लांच गोमती नगर के एक होटल सुरा वे में हुआ। इस अवसर पर फिल्म के निर्देशक प्रज्ञेश सिंह, एक्टर शिशिर शर्मा, लेखक प्रणव विक्रम सिंह और  टीम के अन्य लोग मौजूद रहे।
कंपनी सेक्रटरी से फिल्मकार बने लखनऊ के प्रज्ञेश सिंह का ध्यान हमेशा सामाजिक समस्यायों और कुरूतियो पर रहता है। विगत के वर्षो में छोटी सी गुजारिश जैसी 28 मिनट की फिल्म बनाकर चर्चा में रह चुके प्रज्ञेश सिंह ने हाल में खतना जैसी कुप्रथा पर एक फिल्म का निर्माण व् निर्देशन किया है। प्रज्ञेश को सामाजिक मुद्दों पर फिल्म निर्माण करना व्यावसायिक स्तर पर भले ही फायदे का सौदा न हो, परन्तु उनकी फिल्म को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हमेशा सराहना मिली है। खतने पर आधारित 40 मिनट की अवधि की फिल्म शिनाख्त को अब तक 24 अंतर्राष्ट्रीय फिल्म उत्सव में प्रदर्शित किया जा चूका है। जिसमेंं से शिनाख्त अभी तक 10 से अधिक पुरस्कार अपने नाम कर चुकी है। अमेठी में जन्मे प्रज्ञेश सिंह को 2018 में कला संस्कृति क्षेत्र में लोकमत सम्मान से सम्मानित किया गया था तो 2019 में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक के हाथो रंग भारती सम्मान से अलंकृत किया गया।
 प्रज्ञेश ने बताया कम बजट के चलते टीम ने कठिन महेनत की और 40 मिनट की अवधि की फिल्म शिनाख्त का शूट रिकॉर्ड दो दिन से पूरा किया गया। फिल्म में राजू खेर, शिशिर शर्माए शक्ति सिंह, नवनी परिहार, आरफी लाम्बा, स्टेफी पटेल, मेजर बिक्रमजीत कंवरपाल और कृष्णा भट्ट जैसे नामचीन कलाकारों ने काम किया है। फिल्मिस्तान जैसी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार फिल्म में काम कर चुके सुभ्रांशु दास ने फिल्म का कैमरा संभाला है। तो धार्मिक कट्टरवाद की अवधारणा को तोड़ते हुए सज्जाद अली चंदवानी ने फिल्म में संगीत दिया है। फिल्म की एडिटिंग हिमांशु रस्तोगी ने की है। प्रज्ञेश सिंह और प्रणय विक्रम सिंह के सह लेखन के डायलाग फिल्म के विषय को अद्भुत रोचकता प्रदान करते है। प्रज्ञेश ने बताया धार्मिक पहलू से जुड़े संवेदनशील विषयों पर फिल्म बनना एक जोखिम भरा कदम था, परन्तु इमानदारी से अपनी बात कहने की लगन और टीम के सहयोग से सब आसान होता चला गया। प्रज्ञेश सिंह ने बताया कि फिल्म को भारतीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से यू श्रेणी में प्रमाणन मिलना मनोबल को बढाने वाला था। यह इस बात को दर्शाता है की हम एक साफ़ सुथरी फिल्म बना रहे है। खतना नाम कि यह प्रथा अत्यंत क्रूर और अमानवीय ही नहीं वरन उस समाज और देश के कानून और संविधान की भी खिल्ली उड़ाता नजर आता है। बतादें कि महिलाएं और पुरूषों दोनों में खतना किया जाता है।
तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था और देश की बदलती तस्वीर में जहाँ भारत को विश्व की अर्थ व्यवस्था में अग्रणी होने का खवाब देख रही है। भारत में महिलाओं का खतना बोहरा मुस्लिम समुदाय में प्रचलित हैए जिनकी आबादी दस लाख से थोड़ी ही अधिक है। पश्चिमी भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में स्त्रियों का खतना करने का रिवाज आज भी जारी है।


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