बच्चें बालगृहों को कैदखाना क्यूं समझते?

हुजै़फा
लखनऊ। कई बार बालगृहों से बच्चों के भागने का मामला अखबारों की सुखियां बनता है, फिर उचित उपाय किए वह मामले बंद हो जाते है। ऐसे हालात आखिल क्यूं उन बेसहारा मासूमों के सामने आते है जो पहले से ही प्रकृति के अभिषाप को भुगत रहे है। कोई अनाथ है, तो किसी को अपनों ने ठुकरा दिया। ऐसे मासूम के नाम पर सरकार द्वारा भारी भरकम रकम भी आती है, लोग धर्म-कर्म के नाम पर भी इन बालगृहों को ठीक-ठाक रकम व सामान देते है। फिर यहां पर ऐसा वातावरण क्यूं बन जाता कि बच्चें इसे अपना घर न समझ कर कैदखाना समझते है। इन सवालों के जवाब हमें ही खोजने होगें ताकि ऐसे बेसहारा मासूमों को अपना आशियाना न छोडना पडे़। 
राजधानी लखनऊ में महिला कल्याण विभाग द्वारा निराश्रित व बेसहारा बच्चों के लिए राजधानी में आधा दर्जन सरकारी राजकीय बालगृह संचालित किये जा रहे हैं। इन बालगृह व अनाथालय गृहों में दानदाताओं द्वारा दिये गये पंखे व कूलर यहां के कर्मचारियों व अधीक्षकों द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे है। फल,दूध मिठाईयों और अच्छी खाद्य सामग्रियां यहां काम करने वालों के घरों में पहुंच रही है। उन कर्मचारियों पर तो अब तक कोई कार्रवाई नहीं होती जो यहां पर देखरेख के नाम पर वेतन लेते और अपने फर्ज के साथ बेईमानी करते हुए अनाथों और बेसहारा बच्चों के हक पर डाका डालते और अपना घर भरते है। यहां पर कोई भी दानी यदि दान करने आता तो उसको बहुत से कायदे कानून बताये जाते उसे समय पर आने को कहा जाता किसी बच्चें से बात नहीं करने दी जाती आदि बातों का पाठ पढ़ाने के बाद दानी द्वारा दान की गयी सामग्री पहले यहां के स्टाफ में बंटवारे के बाद बच्चों के हिस्से आती है। बेचारे बच्चों के हाथ सामान आने के बाद उससे दानी के जाने के बाद यह कह कर वापस ले लिया जाता कि बाद में सबको मिलेगा। आदि ऐसी घटनाएं इन बाल गृहों में प्रतिदिन होती रहती है। यहां रहने वाले बच्चें सुविधाओं के अभाव में इसे अपना घर न समझ कर इसे कैदखाना समझते और मानसिक रोगी होते जा रहे है। वह यहां से भागने के प्रयास भी करते और कई बार भाग भी जाते है। 
इन बाल गृहों में कोई परवाह नहीं की जाती वहीं बालगृहों में रहने वाले बच्चों को वह सुविधाएं नहीं दी जा रही जिसके वह हकदार है और शासन और समाजसेवी लोगों द्वारा उन्हें प्रदान की जा रही हे। बच्चे बिना पंखे और कूलर के इस गर्मी से बेहाल हैं। बालगृहों की स्थित यह है कि बच्चों के कमरों में पंखे तक नसीब नहीं है। जो है भी वह खराब पड़े है। प्रयाग नारायन रोड स्थित राजकीय बालगृह में तीन कमरों में छह वर्ष तक के निराश्रित बच्चे रहते है। यहां पर दो कूलर व आधा दर्जन पंखे दानदाताओं द्वारा दिये गये। मगर इन कूलर और पंखों का इस्तेमाल कर्मचारियों द्वारा किया जा रहा है। जबकि बच्चों के कमरों का पंखा काफी दिनों से खराब पड़ा हैं। ऐसे में इस भीषण गर्मी में यहां के अनाथों का हाल क्या होगा यह स्वत: अनुमान लगाना होगा ? इसी तरह गोखले मार्ग पर स्थित राजकीय निराश्रित महिला अनाथालय परिसर में संवासनियों के कमरों के पंखे कई माह से खराब पड़े है। एक संवासनियों ने बताया कि यहां जो भी दानदाताओं द्वारा इस प्रकार की वस्तुएं दी जाती है उसका यहां के कर्मचारी और अधिकारी ही लाभ उठाते है। कुछ इसी प्रकार की स्थिति मोतीनगर स्थित राजकीय बालगृह बालिका में तीन पंखे है। जिसमें दो पंखे खराब है। एक है तो वही हवा देने में असमर्थ है। मोहान रोड स्थित राजकीय किशोर सम्प्रेक्षण गृह परिसर में चार कमरों में संवासी रखे जाते है मगर पंखा किसी भी कमरे में नहीं है। यहीं पर स्थित राजकीय बालगृह बालक में रहने वाले संवासी भी गर्मी से बेहाल है। संवासियों का कहना है कि गर्मी से बचने के लिए दानदाताओं ने पंखे उपलब्ध कराये थे, लेकिन यह पंखे कहां चले गये इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है। इस संबंध में राजकीय निराश्रित महिला अनाथालय की अधीक्षिका का कहना है पंखे न होने से यहां रहने वाली लड़कियों को गर्मी से जूझना पड़ रहा है।
अब ऐसी परेशानी से बच्चों को रहना पडे तो वह इसे बालगृह न समझकर कैदखाना ही समझेगे। इस स्थिति से निपटने के लिये सरकार के साथ-साथ लोगों को भी सामने आना होगा।

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