लोक सन्यासी - योगी आदित्यनाथ



हिंदुत्व पुनर्जागरण अभियान के महानायक योगी जी जनाकर्षण का केंद्र हैं। जनता उनमें स्वामी विवेकानंद और छत्रपति शिवाजी की छवि महसूस करती है। इस भगवाधारी सन्यासी की एक झलक पाने के लिए जन समुदाय उमड़ पड़ता है। वे जहाँ खड़े हो जाते हैं , वहीं से सभा शुरू हो जाती है। देश दुनिया में कहीं भी हिंदू उत्पीड़न की घटनाएं होती हैं, बरबस ही लोगों की निगाहें गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ की ओर चली जाती हैं।

 योगी आदित्यनाथ का अवतरण देवभूमि उत्तराखंड की जनपद पौड़ी गढ़वाल के ग्राम पंचूर में 5 जून 1972 को अजय मोहन बिष्ट के नाम से हुआ। संन्यास और अध्यात्म में रूचि को देखते हुए गोरखपीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी ने उनको योगी आदित्यनाथ के नाम नाथपंथ में दीक्षित किया और 22 वर्षीय की आयु में 15 फरवरी 1994 को अपना उत्तराधिकारी बना दिया। अवेद्यनाथ जी के ब्रह्मलीन हो जाने पर 14 सितंबर सन 2014 को योगी आदित्यनाथ जी  गोरक्षपीठाधीश्वर बने।  

गोरक्षपीठ सामाजिक समरसता की प्रख्यात पीठ है जहां छुआछूत, ऊंच-नीच, जाति-पाँति, अगड़ा-पिछड़ा, दीन-दलित जैसे शब्दों का कोई स्थान नहीं। योगी जी लोक हित के लिए विषपान करने वाले भगवान शिव के अवतार महायोगी गुरु गोरखनाथ के अंश हैं। विषय कोई हो, मंच कोई हो, अवसर कोई हो, समरसता ही उनके भाषण का मुख्य बिंदु होता है।

मात्र 26 वर्ष की आयु में योगी जी सन 1998 में गोरखपुर से पहली बार सांसद बने। पांचवी बार सांसद रहते हुए 45 वर्षीय योगी जी ने उत्तर प्रदेश के 32 वें मुख्यमंत्री के रूप में 19 मार्च सन 2017 को शपथ ग्रहण किया। योगी जी ने  हिंदुत्व व विकास का नारा दिया जो अखण्ड भारत के निर्माण का एक सारगर्भित मंत्र है। उनका मानना है कि हिंदुत्व राष्ट्रीयता का पर्याय है और विकास खुशहाली का सोपान।

हिंदू उत्पीड़न की घटनाओं से व्यथित योगी जी ने सन 2002 में हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया। वाहिनी ने नेपाल सीमा पर माओवादियों के बढ़ते प्रभाव को और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को रोका। वे अंतर्राष्ट्रीय हिंदू संगठन विश्व हिंदू महासंघ के अंतर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। उन्होंने सन 2006 गोरखपुर, सन 2010 हरिद्वार तथा सन 2016 काठमांडू नेपाल में अंतर्राष्ट्रीय विराट हिंदू महासम्मेलन का सफलतापूर्वाक आयोजन किया।

योगी जी का खानपान, भोजन, रहन-सहन एक सामान्य व्यक्ति की तरह है। वे सोशल साइट्स पर बेहद लोकप्रिय हैं। उनकी हर पोस्ट को लोग लाइक, कमेंट, शेयर करते रहते हैं। जनहित में सत्ता का संचालन और खराब कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने में उनकी कुशलता के लोग कायल हैं। अभी हाल ही में फेम इंडिया के सर्वे में उनको सी.एम. नंबर वन चुना गया। योगी जी अमेरिका, मलेशिया, नेपाल, कंबोडिया, थाईलैंड, सिंगापुर इत्यादि देशों की यात्रा की है। वे दर्जनों शैक्षिक संस्थानों के प्रबंधक, संरक्षक, लेखक, संपादक, विभिन्न संगठनों के संरक्षक, अध्यक्ष तथा अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा के अध्यक्ष हैं।       

एक योगी के लिए क्या सत्ता और क्या संन्यास, लोक कल्याण ही उसके जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। कथनी व करनी में अभेद स्थापित करने वाले योगी जी इसे कदम-कदम पर चरितार्थ करते हैं। 20 अप्रैल 2020 को योगी जी लखनऊ में कोरोना महामारी से निपटने के लिए टीम-11 की बैठक ले रहे थे। मीटिंग के मध्य उनको पूर्व गृहस्थ आश्रम के पिता के स्वर्गवासी होने का समाचार मिला। अविचलित योगी जी अपना कार्य करते रहे। बैठक के बाद देवलोकवासी आत्मा को श्रद्धांजलि देकर लोकहित के कार्य में पुनः जुट गए।

 सदियों से उपेक्षित बनटांगिया, मुसहर, थारू जैसे वंचित समाज को ढूंढ ढूंढकर उन्हें सम्मान व विकास की मुख्यधारा में लाना, प्रोटोकॉल तोड़कर छोटे-छोटे बच्चों को दुलारना, अचानक गाड़ी से उतरकर दीन-दुखियों का हाल-चाल पूछना, नारी जगत को मातृ-शक्ति के रूप में पूजना, किसी को भी भूखा न सोने देने का संकल्प, योगी जी की प्रकृति है। जनहित में योगी जी के कार्यों को गिनना आकाश के तारे गिनना है। जन समस्याओं का निस्तारण, बाढ़ की विभीषिका इंसेफेलाइटिस का कहर, राहत कार्य हो या विकास की गति या कोरोना जैसी महामारी," योगी" लय, प्रलय व महाप्रलय में भी चट्टान की तरह अडिग रहते हैं। भीषण संकट में योगी सारथी व महारथी दोनों होते है। वे खुद तय करते हैं कि केवल पाञ्चजन्य के उद्घोष से ही काम हो जाएगा या फिर गांडीव भी उठाना पड़ेगा। अत्याचारियों, व्यभिचारियों व भ्रष्टाचारियों के लिए योगी महाकाल हैं।

मानव शरीर क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर इन पांच तत्वों से निर्मित है। योगी जी के शारीरिक संरचना में अग्नि व गगन तत्व की अधिकता है। अग्नि तत्व उन्हें ऊर्जावान व तेजस्वी बनाता है,  गगन तत्व उन्हें शिखर से सर्वोच्च शिखर की ओर ले जाता है। क्षिति जैसी क्षमाशीलता, जल जैसी गंभीरता व समीर जैसा वैचारिक प्रवाह उन्हें औरों से अलग करता है ।उनके विराट व्यक्तित्व में पूर्व गृहस्थाश्रम की मां सावित्री देवी और पिता आनंद सिंह बिष्ट की कर्मठता समाई है। दादा गुरु दिग्विजयनाथ जी का सत् साहस और गुरु अवेद्यनाथ जी की समरसता उनके रोम-रोम में व्याप्त है। योगी किसी के प्रतियोगी नहीं अपितु सर्वोपयोगी हैं।

भिखारी प्रजापति 

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