अस्थमा पर जीत हासिल कर सपने साकार करें: डा. सूर्यकान्त
हुजै़फा--
लखनऊ। अस्थमा को लेकर कई तरह की भ्रांतियों और भय को दूर करने के लक्ष्य और अस्थमा से पीडि़त लोगों को किसी भी तरह की सीमाओं के बंधन से आजाद जीवन के लिए प्रेरित करने का संकल्प विश्व अस्थमा दिवस पर हमें करना चाहिए। इन्हेलेशन थेरेपी से जुड़ी भ्रांतियों को खत्म कर इसे सामाजिक रूप से ज्यादा स्वीकार्य बनाएं और मरीजों और उनके डॉक्टर्स के बीच संवाद को बढ़ावा देने में मदद करें। अस्थमा दीर्घावधि बीमारी है जिसमें श्वास मार्ग में सूजन और श्वास मार्ग की संकीर्णता की समस्या होती है जो समय के साथ कम ज्यादा होती है। अनुमान के मुताबिक स्थानीय डॉक्टर्स रोजाना औसतन करीब 40 मरीजों को अस्थमा की बीमारी से पीडि़त पाते हैं। इसमें से करीब 60 फीसदी से ज्यादा पुरुष होते हैं। हर साल बच्चों में अस्थमा (पीडिएट्रिक अस्थमा) के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। डॉक्टर्स का मानना है कि वे बच्चों में अस्थमा के 25-30 नए मामले हर महीने देखते हैं। पिछले एक वर्ष में अस्थमा के पीडि़त मरीजों की संख्या में औसतन 5 फीसदी बढ़ोतरी देखी गई है। कुछ वर्षों में इन्हेलेशन थेरेपी लेने वाले मरीजों की संख्या बढ़ी है, करीब 20 फीसदी अस्थमा पीडि़त किशोरावस्था से पहले ही या किशोरावस्था के दौरान इन्हेलर का उपयोग बंद कर देते हैं। अस्थमा के प्रमुख कारणों में वायु प्रदूषण से लेकर एयर पार्टिकुलेट मैटर्स का बढऩा, धूम्रपान, बचपन में सही उपचार नहीं होना, मौसम में बदलाव जिसकी वजह से कॉमन फ्लू जैसा वायरल इन्फेक्शन होना और मरीजों में इसके प्रति अनदेखी हैं। डॉ. सूर्य कान्त राष्ट्रीय अध्यक्ष, इण्डियन कॉलेज ऑफ एलर्जी, अस्थमा एण्ड एप्लाईड इम्यूनोलॉजी ने कहा दमा और इनहलेशन थेरेपी के प्रति लोगों की धारणा बदलना बेहद ज़रूरी है। इन्हलेशन थेरेपी लोगों के जीवन पर दमा का प्रभाव कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, इसलिए इसका अनुपालन महत्वपूर्ण है। सांस के माध्यम से औषधियां लेने से वे सीधी फेफड़ों में पहुंचतीं हैं। लेकिन मरीजों को पूरा लाभ पाने के लिए लिखे गए उपचार को अपनानी की ज़रुरत है। इनहलेशन थेरेपी लक्षणों से राहत देकर और उन्हें भडकऩे से रोककर दमा को नियंत्रित करता है, किन्तु उनका असर तभी होगा जब मरीज अपने डॉक्टर के साथ सहयोग करे और बतायी गयी विधि के अनुसार उपचार का प्रयोग करे। इस स्थिति के बारे में लोगों की जानकारी बढ़ाना ज़रूरी है, क्योंकि भारत में मरीज बीच में ही इनहलेशन थेरेपी बंद कर देते हैं जिसके कारण रोग पर नियंत्रण मुश्किल हो जाता है।
यह जानना महत्वपूर्ण है कि अस्थमा के लक्षण नहीं दिखने का मतलब अस्थमा मुक्त होना नहीं है। यह सबसे बड़ी चुनौती है कि अस्थमा के लक्षण दिखना बंद होने पर लोग उपचार लेना बंद कर देते हैं, ऐसे में अस्थमा को मैनेज करना मुश्किल हो जाता है। लोग ऐसा प्रमुख रूप से इलाज में आने वाले खर्च से बचने के लिए करते हैं। दुर्भाग्य से ऐसा करने से इस बीमारी को बढऩे में मदद मिलती है और इस बात की आशंका बढ़ जाती है कि अस्थमा के लक्षण किसी भी समय फिर से दिख सकते हैं और इस बार उसका प्रभाव दोगुना होगा। इस बात को समझना महत्वपूर्ण है कि लक्षण नहीं दिखने का मतलब अस्थमा से मुक्त होना बिल्कुल नहीं है। अस्थमा का इलाज रोकने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
डॉ. बी.पी. सिंह वरिष्ठ चेस्ट फिजीशियन के मुताबिक अस्थमा जैसी दीर्घावधि बीमारी से निपटने के लिए लोगों को शिक्षित करने का यह प्रयास बहुत महत्वपूर्ण है। रुबेरोकजिं़दगी का यह अभियान 'अस्थमा के खिलाफ जीत' की तरफ ले जाएगा और मरीज अपने खुद के उपचार में ज्यादा भागीदारी और प्रभावी भूमिका निभा पाएंगे। इन्हेलर के उपयोग और इस बीमारी की रोकथाम के लिए डॉक्टर्स के साथ मिलकर काम करने से मरीज ज्यादा खुशहाल जिं़दगी जी सकेंगे। अस्थमा के प्रबंधन पर संवाद को प्रोत्साहित कर हम विश्व अस्थमा दिवस को इस तरह मनाएं कि हमारे प्रयास से अस्थमा से प्रभावित लोग अपने दैनिक जीवन में ज्यादा बेहतर काम कर सकें।
डॉ. एस. निरंजन वरिष्ठ बाल चिकित्सक कहते हैं, इन्हेल्ड कोर्टिकोस्टरॉइड थेरेपी अस्थमा की रोकथाम की आधारशिला है। किसी भी उपचार विधि के प्रभावशीलता और सुरक्षा के लिए दवा की सही तरीके से डिलीवरी महत्वपूर्ण है। आईसीटी के मामले में दवा सीधे संकीर्ण हुए श्वास मार्ग में छोटी खुराक के रूप में पहुंचती है जो उसके संभावित साइड इफेक्ट्स को सीमित कर देती है। ओरल मेडिकेशन में दवा की खुराक आईसीटी के मुकाबले कई गुना होती है। दवा की यह अधिक खुराक फिर शरीर के अन्य हिस्सों में भी पहुंचती है जहां पर इसकी जरूरत नहीं थी और सिस्टम में साइड इफेक्ट्स को बढ़ावा देती है। अस्थमा के उपचार से जुड़ी भ्रांतियों का दूर होना भी जरूरी है। इन्हेल्ड कोर्टिकोस्टरॉइड्स प्रमाणित हैं और अस्थमा की रोकथाम के लिए बड़े पैमाने पर इसका उपयोग होता है। हालांकि जागरूकता के अभाव में बहुत से लोग यह थेरेपी लेने के अनिच्छुक होते हैं। बहुत से लोगों के लिए 'स्टेराइड' शब्द का मतलब मसल्स बनाने की दवा से है। आमतौर पर कोर्टिकोस्टराइड को एनाबॉलिक स्टेराइड्स समझ लेते हैं।
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