अतिक्रमण से पर्यावरण को नुकसान, जिम्मेदार कौन

हुजै़फा

लखनऊ। अतिक्रमण जीवन और व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खलनायक बन गया है। जिधर देखिए हर तरफ अतिक्रमण की भरमार है। इस अतिक्रमण के कारण बाजारों और रास्तों पर निकलना दूभर हो गया है। कुछ किलोमीटर की दूरी घंटों में तय होती है। इससे एक तो हमारी राष्ट्रीय सम्पदा यानि पेेट्रोलियम पदार्थों का नुकसान होता है तो दूसरी तरफ जाम के कारण प्रदूषण अधिक होने से लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। अतिक्रमण से आज सबसे ज्यादा खतरा हमारे पर्यावरण को हो रहा है। पर्यावरण में प्रदूषण बढने के कारण सांस, हदय, आंखों की बीमारी के साथ ही तमाम और तरह की बीमारियों से लोग जूझ रहे है। इससे अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीजों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। 
राजधानी लखनऊ में जब भी कोई बड़ा आयोजन होता, बड़े कार्पोरेट मेहमान आते या राजनेता आते तो उनके आवभगत में और राजधानी की बेहतर छवि गढ़ने लिए पूरा प्रशासनिक अमला पूरी सामर्थ से काम करता है। उसका परिणाम भी पूरे शहर में दिखाई देता है, किन्तु आयोजन खत्म होने के बाद राजधानी का हाल फिर वही हो जाता जो पहले था, यानि अतिक्रमण, जाम, शोर, गन्दगी...। यानि जब किसी को राजधानी का हाल बेहतर दिखाना होता है, तो यहां पर हालात सही हो जाते है, फिर वापस उसी धर्रे पर हो जाते है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि अधिकारी तो वही थे, जो पहले थे और जो अब भी शहर की सूरत संभालने के लिए जिम्मेदार हैं। सुविधाएं भी वही हैं, जिनसे पूरे शहर की सुरक्षा व यातायात व्यावस्था चाक-चौबन्द हो जाती है। कहीं पर भी ट्रैफिक को जाम से जूझना नहीं पड़ता, किसी को रास्तों पर आने-जाने में दिक्कत नहीं होती। हर तरफ साफ-सफाई नजर आती है, निचले स्तर का जो अमला पहले ट्रैफिक और सफाई का बंदोबस्त देखता था, वही इन आयोजनों के वक्त भी होता है। इन आयोजनों बाद कहां खोट आ जाती है- नीयत में या नीति मेंं दरअसल, नीतियां तो बेहतरी के लिए ही बनती हैं, लेकिन उनके क्रियान्वयन के वक्त नीयत में खोट आ जाती है। कहीं जिम्मेदारों को ऊपरी कमाई दिखती है, तो कहीं ऊपरी दबाव व्यवस्था को बरबाद करने में भूमिका निभाता है। इसके अलावा, काम करने तरीका भी जिम्मेदार है। पूरा प्रशासनिक अमला, चीजों को फौरी तौर पर चकाचक दिखाने की मानसिकता से संचालित है। इसीलिए ऐसा नहीं हो पाता कि व्यवस्था हरदम दुरुस्त हो और आकस्मिकता की स्थिति में युद्धकाल जैसे बंदोबस्त न करना पड़ें। कारण और भी हैं। यहां नीयत की बात सबसे पहले आती है। इसे इस तरह समझ सकते हैं कि अतिक्रमण को पहले फैलने दिया जाता, फिर हटाने के नाम पर नगर निगम और पुलिस प्रशासन द्वारा खानापूर्ति की जाती है। 
सरकार चाहे जितने मास्टर प्लान बना लें, लेकिन उसको अमली जामा तो प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा ही पहनाया जा सकता है। कही अवैध वसूली तो कहीं तालमेल में कमी के कारण हमारा पर्यावरण इस अतिक्रमण की भेंट चढ़ता जा रहा है, जिसका खमियाजा सब को भुगतना पड़ रहा और हमारी आने वाले पीढ़ियों को भी भुगतना पड़ेगा। इस बारे में मैंने  कुछ लोगों से बात की तो सभी ने अतिक्रमण से हो रही परेशानी और शहरीकरण से पेड़ों की कटाई को दोषी मानते हुए इस ओर सार्थक पहल न करने के लिए प्रशासनिक अमले को दोषी ठहराया। सभी ने पर्यावरण संरक्षण की बात कही, तो किसी ने प्रकृतिक संसाधनों के दोहन पर अंकुश लगाने की बात कही। पर्यावरण प्रेमी अशोक ने कहा आज लोग बिना किसी की अनुमति के अपने घरों और संस्थानों में सबमरसिबल पम्प लगवा लेते हैं, इसका बहुत जगहों पर दुरुपयोग भी हो रहा है। पेड़-पौधों के कम होने से वातावरण का तापमान भी बढ़ रहा है जो हमारे लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है।

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