जिताऊ उम्मीदवार की चाह में बाहुबली, धनबलियो पर दांव

हुजै़फा

लखनऊ। गत माह शुरु हुए लोकसभा-१९ के चुनाव पर गौर करें तो सभी चरणों में अब तक पार्टियों ने जिताऊ उम्मीदाव की चाह में साफ छवि के नेताओं से दूरी ही बनाकर रखी। आधे से ज्यादा चुनाव के चरण बीत चुके है, फिर भी पार्टियों जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश में पार्टी से बाहर के नेताओ,अभिनेताओं और,   माफियाओ, दलबदलुओं को तरजीह दे रही है। सभी पार्टियां जिताऊ प्रत्याशी ढूंढने में मानकों को दर किनार कर रही है। पार्टियां हर हाल में अपने लिये ऐसे उम्मीदवार ढ़ूढ रही जो उन्हें लोकसभा में जीत दिला सके। हर पार्टी ऐसी रणनीति बनाने में लगी है कि उसे जिताऊ उम्मीदवार मिल सकें और उसके सहारे वह अपनी सीट बढ़ा सकें। 
यह पहली बार नहीं हो रहा कि पार्टियों ऐसे प्रत्याशियों की तलाश कर रही है। सबसे पहले १९७७ में यह स्थिति बनी जो आज भी कायम है। पार्टियां ऐसे  प्रत्याशियों पर दांव लगाती रही जो उनको निश्चित रुप से जीत दिला सके। इसके लिये वह दागी, माफियाओं, खिलाडियों, उद्योगपतियों, पूर्व अधिकारियों, नेता पुत्रों-सम्बधियों और कलाकारों को अपनी पार्टी का प्रत्याशी बनाकर सफल हो रही है। इन आधारों पर लोकसभा और विधान सभा में कई चेहरे पहुंचे भी है। 
किन्तु आज हालात बहुत बदल गये है, जनता को इन नामों और चेहरों से बहलाना अब पार्टियों और नेताओं के बस की बात नहीं रह गयी है। 
जनता अब नाम के साथ काम भी देखना चाहती है। वह तर्क के साथ प्रत्याशी, पार्टी का इतिहास देखने के साथ उसके घोषणा-पत्र को भी आधार बना रही है। मतदाता अब वादों के साथ पार्टियों और उनके नुमाइंदों का काम भी देख रही है। सोशल मीडिया ने पुरानी पार्टियों को अपना नेटवर्क और काम करने का तरीका बदलने पर मजबूर  किया है। युवा मतदाताओं और महिलाओं को कोई भी पार्टी नजरअंदाज कर आगे नहीं बढ़ सकती। इससे पार्टियां ऐसे चहरों की तलाश रही जो उनको चुनावों में जिता सके। दोनो राष्ट्रीय पार्टियां अपना परिणाम बेहतर करने के लिये हर संभव प्रयास कर रही है। वह एक दूसरे पर बयानबाजी के साथ उनकी हर चाल पर नजर भी रख रही है। पीआर ऐजेंसियां हर पल की खबर रख नई रणनीति तैयार कर अपनी पार्टी के प्रत्याशियों को जंग के लिये तैयार कर रही है। पार्टिंयां अपने प्रत्याशियों पर नजर रखने के साथ दूसरे छोटे दलों के प्रत्याशियों पर भी होमवर्क कर रही कि यदि सरकार बनने में सीटों की कमी हो तो उसे किस तरह से पूरा किया जा सके। आज दोनों राष्ट्रीय पार्टियांं एक दूसरे पर तो निशाना साध रही किन्तु क्षेत्रीय पार्टियों को अपने निशाने पर फिलहाल नहीं ले रही है। पता नही कब इन छोटी पार्टियो की जरुरत सरकार बनाने मे पड़ जाये।
हर पार्टी हर हाल में लोकसभा में अधिक से अधिक सीटें जीतकर अपनी मजबूत दावेदारी पेश करना चाह रही है। चाहे उन्हें अपनी पार्टी के मानकों से हटना भी पडे तो भी वह इसको नजरंदाज कर जिताऊ प्रत्याशी की तलाश में लगी है। क्षेत्रिय पार्टियां भी लोकसभा में जिताऊ प्रत्याशियों के सहारे अपनी मजबूत दावेदारी पेश करने के लिये जी तोड मेहनत कर अधिक सीटें जीतने के प्रयास कर रही है।

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