पूर्वांचल की 27 सीटों पर गठबंधन मजबूत

हुजैफा
लखनऊ। लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 80 में से 53 सीटों पर मतदान हो चुका है और अंतिम दो चरणों में पूर्वांचल की 27 सीटों पर मतदान होना है। अभी तक जिन सीटों पर मतदान हुआ है उसका आंकलन किया जाए तो भाजपा नुकसान में दिख रही है। वहीं पूर्वांचल की 27 सीटों पर भी कांग्रेस गठबंधन को टक्कर दर रही जिससे मुकाबला और दिलचस्प हो गया है।   अंतिम दो चरणों में पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिन 27 सीटों पर मतदान होना है उसमें 24 सीटों पर भाजपा और दो सीटों पर अपना दल ने चुनाव जीता था। जबकि एक सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई थी। भाजपा और अपना दल ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा था और 2019 के चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन है। राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि 2014 के मुकाबले 2019 में जो बदला है वह सपा-बसपा और रालोद का गठबंधन। लेकिन अभी तक जिन 53 सीटों पर मतदान हुआ है उसका निष्कर्ष यही निकलकर आ रहा है कि गठबंधन के दल एक दूसरे को अपना वोट ट्रांसफर कराने में सफल रहे। सपा के खाते वाली सीटों पर बसपा के समर्थक और बसपा के खाते वाली सीटों पर वोट ट्रांसफर करने मे सफल रहे है।
समाजवादी पार्टी पूर्वी उत्तर प्रदेश में मजबूत है। लेकिन सपा और बसपा के खाते में गई सीटों पर जिस तरह से उम्मीदवारों को चुनाव कर मैदान में उतारा गया है उससे साफ प्रतीत हो रहा है कि यहां से बेहतर  परिणाम मिलेगे। गठबंधन ने जातिगत राजनीति करके उम्मीदवारो का चयन किया है जिसका फायदा मिलता दिख रहा  है। वहीं भाजपा विकास और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर चुनाव मैदान में है। समाजवादी पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा पूर्वांचल की उन सीटों पर हो रहा है जहां उसकी जीत आसान मानी जा रही है। इन सीटों में बलिया, चंदौली, गोरखपुर की सीटें शामिल हैं। वहीं बसपा की भदोही और जौनपुर सीट भी जातिगत समीकरण के कारण उलझी है। सियासी जानकार बताते हैं कि पूर्वांचल की जिन 27 सीटों पर अंतिम दो चरणों में मतदान होना है वहां महाराजगंज, कुशीनगर, सलेमपुर, देवरिया, चंदौली, गाजीपुर, घोषी, रॉबर्ट्सगंज, मिर्जापुर सीटों पर कांग्रेस भी टक्कर दे रही है। इसके पीछे प्रमुख कारण यह है जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर वोट गठबंधन को जा रहा है। भाजपा अपने परंपरागत वोट बैंक के आधार पर आगे बढ़ने का दावा कर रही है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी सीट पर भी मोदी को चुनौती मिल रही है। 2014 जैसी लहर अब नही है। अगर 2014 के सपा-बसपा के वोट को जोड़ भी दिया जाए समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार टक्कर दे रही है। वहीं कांग्रेस के अजय राय 2014 में विधायक रहते हुए प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। जबकि विधानसभा चुनाव में अजय राय परास्त हो चुके हैं। भले ही उत्तर प्रदेश की सियासत में जातिगत राजनीति का बोलबाला रहा हो लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव दिलचस्प है और इसमें बड़ी संख्या में युवाओं मतदाता भी है जो विकास और बेरोजगारी के मुद्दे पर मतदान करेगे।


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