राइटवॉक फाउंडेशन ने शिक्षा के अधिकार के तहत कक्षा 8 के बाद की शिक्षा पूरी करने के लिए शुरू की आर्थिक मदद योजना

आरटीई स्कॉलर्स फण्ड दो महीनों में 200 छात्रों के लिए 1.6 करोड़ रुपए जुटाने का होगा प्रयास
लखनऊ: आर एल बी स्कूल की छात्रा आरती कश्यप सही मायनों में सीखने वाली और उद्यमी हैं। इन्टरनेट की सहायता से इन्होंने 14 वर्ष की उम्र में प्राकृतिक वस्तुओं को रसायनों के मदद से लम्बे समय तक संरक्षित करने के तरीकों को सीखा और साथ ही अमेरिका से एक डिजिटल मार्केटिंग का कोर्स भी पूरा किया है। ये इन्स्टाग्राम के जरिए बाजार से जुड़तीं हैं और गर्व से कहतीं हैं कि “इसमें जितनी भी पूंजी लगी, वो उनकी अपनी बचत से है”। ये उचित है कि आरती जैसे युवा और प्रतिभावान बच्चों, जो नई पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन सकते हैं, को उनकी पढ़ाई पूरी करने के लिए सहायता दी जाए। किन्तु इस छात्रा, जिसे शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 12.1.c (जिसके अंतर्गत निजी स्कूलों को 25% सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित रखना होता है) के तहत एक निजी स्कूल में प्रवेश मिला था, के सामने एक नई चुनौती है। कक्षा 8 तक की शिक्षा पूरी करने के बाद उसके माता-पिता परेशान हैं कि आगे की पढ़ाई के लिए फीस कैसे दे पाएँगे। जिस स्कूल में आरती पढ़ती है, वो एक अत्याधुनिक निजी स्कूल है, जिसकी फीस अधिक है। यही समस्या और भी ऐसे छात्र—ऋषिका, प्रविष्ट आदि—के सामने भी है। ये वो छात्र हैं जिन्हें आठ वर्ष पहले 2015 में कक्षा 1 में शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों में प्रवेश मिला था।
राइटवॉक फाउंडेशन ने इन बच्चों के कक्षा 8 तक की पढ़ाई पूरी करने पर इन्हें ताज महल होटल में आयोजित एक समारोह में अभिनंदित किया।राइटवॉक ने अब तक 5,76,273 आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से आने वाले छात्रों के कक्षा 1 में प्रवेश में सहायता की है। इस अवसर पर राइटवॉक ने आरटीई स्कॉलर्स फण्ड (आरटीईएसएफ), एक अति आवश्यक पहल जिसके अंतर्गत ऐसे छात्रों की कक्षा 12 तक शिक्षा पूरी करने के लिए आवश्यक धनराशि से उनकी सहायता की जाएगी, का शुभारम्भ किया। ये कॉर्पोरेट तथा अन्य लोकोपकारी संस्थाओं के साथ मिल कर किया जाएगा। इस आयोजन में बहुत सी ऐसी कम्पनियों और संस्थाओं ने भाग लिया। राइटवॉक की संस्थापक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी समीना बानो ने कहा: “ऐसे बच्चों के लिए कक्षा 8 तक की शिक्षा पूरी होना ही एक बड़ी उपलब्धि है। किन्तु यदि ये आगे की पढ़ाई न कर पाएँ, तो फिर इस अधिनियम का उद्देश्य और पिछले 8 वर्ष की मेहनत सब धर का धरा रह जाएगा।” समीना ने आगे कहा, “राइटवॉक में हमने प्रयास किया कि आरटीई के अंतर्गत अधिक से अधिक बच्चों को प्रवेश मिले; और इसमें हमें सफलता भी मिली। 2015 में 54 बच्चों से शुरू करते हुए हमने अब तक 5,76,273 बच्चों को प्रवेश में सहायता की है। किन्तु हमने महसूस किया की जिस बच्चे ने 2015 में शुरुआत की, वो कक्षा 8 पूरा करने के बाद फिर से अटक गया है। या तो वो बच्चा उस स्कूल की पूरी फीस दे और आगे की पढ़ाई (कक्षा 9-12) पूरी करे, या फिर किसी निचले स्तर के स्कूल में प्रवेश ले, क्योंकि उसके माता-पिता निजी स्कूलों की अधिक फीस देने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए हमने आरटीई स्कॉलर्स फण्ड की शुरुआत की है।” राइटवॉक के अनुसार, ये पहल दरअसल एक अल्पकालिक रणनीति (शॉर्ट-टर्म स्ट्रेटेजी) है। “दीर्घकालिक रणनीति (लॉन्ग-टर्म स्ट्रेटेजी) के तहत हम लोग नीति के स्तर पर हस्तक्षेप करेंगे, ताकी कुछ इस बिंदु पर कुछ मजबूत प्रावधान बनाए जा सकें,” समीना ने कहा। व्यक्तियों, कॉर्पोरेट तथा अन्य ऐसी संस्थाओं के योगदान से आरटीईएसएफ के तहत लगभग 50-200 ऐसे छात्रों की चार वर्षों (कक्षा 9-12) तक सहायता करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए 40 लाख रुपए से लेकर 1.6 करोड़ रुपएतक जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। इसकी गणना इस आधार पर की गई है कि प्रति वर्ष एक छात्र पर लगभग 80,000 रुपए का खर्च आता है, जिसमें प्रवेश शुल्क, शिक्षा (ट्यूशन) शुल्क, पुस्तकें, वर्दी,और बच्चियों के लिए यात्रा हेतु प्रोत्साहन राशि शामिल है। एक सुरक्षित और सुगम यात्रा का प्रोत्साहन बच्चियों के लिए शिक्षा पूरी करने में बहुत अधिक कारगर होता है।आरटीई स्कॉलर्स फण्ड के तहत इसकी व्यवस्था होगी। राइटवॉक इसके लिए 20,000 रुपए मूल्य के 800 टिकट पेश कर रहा है। दानकर्ता ‘सिल्वर डोनर’ (10 लाख रुपए तक का योगदान करने पर), ‘गोल्ड डोनर’ (20 लाख रुपए तक का योगदान करने पर) और ‘फाउन्डिंग डोनर’ (20 लाख रुपए से ऊपर का योगदान करने पर) बन सकते हैं।
राइटवॉक फाउंडेशन की सह-संस्थापक शिप्रा ने कहा: “हमने इस पहल को क्रियान्वित करने के लिए एक विस्तृत कार्यनीति बनाई है। हम ऐसे जरूरतमंद बच्चों की पहचान करेंगे; स्कूलों के साथ मिल कर उपलब्ध सीटों की जानकारी हासिल करेंगे; फिर दोनों को मिलाएँगे। जो कूपन दिए जाएँगे, वे दो प्रकार के होंगे: ‘फीस वाउचर’ और ‘एड वाउचर’। फीस वाउचर स्कूलों द्वारा दो बार में भुनाए जा सकेंगे—पहला प्रवेश के समय, और दूसरा अर्धवार्षिक परीक्षाओं के बाद। एड वाउचर छात्रों के अभिभावकों द्वारा स्कूल के ड्रेस, किताबें और यात्रा खर्चों के लिए उपयोग किया जा सकेगा।” बच्चे का प्रदर्शन, उसकी स्कूल में उपस्थिति और वो कितने नियमित रूप से स्कूल जाता है, इन सब पर नज़र रखी जाएगी, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि जो सहायता प्रदान की जा रही है, उसका उचित उपयोग हो रहा है। राइटवॉक फाउंडेशन के बारे में: राइटवॉक फाउंडेशन प्रदेश तथा केंद्रीय सरकार के साथ मिल कर सरकार की कल्याणकारी नीतियों के बेहतर कार्यान्वयन के लिए उनके साथ मिल कर नीतियों को दिशा देने तथा उसे धरातल पर लाने के लिए कार्य करता है। हम नीति की दिशा के साथ ही शासन विधि, क्षमता निर्माण से लेकर जमीन पर कार्यान्वयन पर कार्य करते हैं।इसमें हम राज्य की मशीनरी का उपयोग करते हुए उन्हें और सशक्त बनाते हैं। उत्तर प्रदेश में पिछले कई वर्षों में हमने शिक्षा में आरटीई के अनुच्छेद 12.1.c. और अपरेंटिसशिप योजना में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है, जिसके तहत हमने 5,76,237 आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों और 70,000 आईटीआई के स्नातकों की सहायता की है। भारत में मौजूद सामाजिक-आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए हम कई समाधान प्रदान करते हैं। इसके लिए हम पाँच मुख्य राज्योंमें शिक्षा, आजीविका तथा स्वास्थ्य के क्षेत्रों में संरचनात्मक स्तर पर और लोकनीति के क्षेत्र में उद्यमशीलता प्रदान करने का प्रयास करते हैं। हमारा मिशन है 10 मिलियन (1 करोड़) अत्यधिक गरीब परिवारों को गरीबी से टिकाऊ रूप से ऊपर उठाने का। इसके लिए अगले पाँच वर्षों में, पाँच राज्यों में उन्हें अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य निःशुल्क प्राप्त हो, इसके लिए हम प्रयासरत हैं। हमारा उद्देश्य है इन राज्यों में 100 करोड़ रुपए के सरकारी निधि, जो कि विभिन्न योजनाओं में स्वीकृत है, वो ‘अनलॉक’ हो और लाभार्थियों तक पहुँचे।

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