कोरोना के आतंक की अतिश्योक्ति

कोरोना के आतंक की अतिश्योक्ति
हर बार की तरह इस बार भी नोवेल कोरोना संक्रमण के नाम से एक नयी महामारी ने दस्तक दिया लेकिन बहुत कुछ बदला-बदला सा है। इसका स्वरूप वैश्विक है और यह चीनअमेरिकारूसस्पेनब्रिटेनइटलीफ्रांसजर्मनी और जापान जैसे विकसित देशों में पैर-पसार कर अपने देश में आया है। साथ में इतने सारे काल्पनिक भय लेकर आया है जो अब तक यथार्थ और तर्क पर खरे नहीं उतर पा रहें हैं।
31 मई तक के आंकड़े बतातें हैं कि पूरी दुनिया में इसके संक्रमण से 61,72,328 लोग ग्रसित हैं। 44 प्रतिशत अर्थात 27,43,911 लोग ठीक हो गए। 3,71,175 संक्रमित लोगों की मृत्यु हो चुकी है जो 6 प्रतिशत हैं। इसका इतना भय कि सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन के नाम पर पूरी दुनिया की आर्थिक गतिविधियों को रोक दिया गया। जिसके दुष्प्रभाव से विकासशील देशों में हा-हाकार मचा है।
इस भय को समझने के लिए दुनिया में रोग और मृत्यु के आंकड़े देखतें हैं। 2016 में दुनिया भर में 5.69 कऱोड लोगों की मौत हुई। हृदय और सम्बंधित रोगों से 1.52 कऱोड,  साँस सम्बंधित रोगों से 30 लाखफेफड़े के कैंसर से 17 लाखशुगर से 16 लाखश्वसन नाली के निचले हिस्से में संक्रमण से 30 लाखदस्त से 14 लाखटी.बी. से 13 लाखएड्स से 10 लाख और सड़क दुर्घटनाओं में 14 लाख मौतें हुईं।
टी.बी. एक संक्रामक रोग है। यूरोपीय रेस्पीरेट्री जर्नल के अनुसार दुनिया की लगभग एक-चौथाई आबादी अव्यक्त टी.बी. से संक्रमित हो सकती है। वैश्विक टी.बी. के आंकड़े बतातें हैं कि 2018 में टी.बी. रोग के एक करोड नए मामले सामने आये और पंद्रह लाख लोगों की मृत्यु हुई जिनमे दो लाख बच्चे थे। इस गंभीरतम संक्रामक रोग पर हल्ला नहीं मचा। लॉकडाउन लगाकर पूरी दुनिया को घरों में कैद नहीं किया गया। आर्थिक गतिविधियों को रोककर जनता को भूख से तडफने के लिए नहीं छोड़ा गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा ज़ारी किये गए मौत के आंकड़े यह संकेत देतें हैं कि नोवेल कोरोना संक्रमण और उससे होने वाली मौतों को आतंक के रूप पेश किया गया।
भारत में 31 मई तक 1,82,143 लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं। 86,983 मरीज़ ठीक हुए और 5,164 संक्रमित लोगों की मृत्यु हुई है। ठीक होने वाले मरीज़ 48 प्रतिशत और मरने वाले मरीज़ 2.8 प्रतिशत हैं। इसकी तुलना में भारत के सन्दर्भ में टी.बी. की विभीषिका बहुत ही डरावनी है। 2018  में  भारत में 26,90,000 लोगों को सक्रिय स्तर पर  टी.बी. था जो पूरी दुनिया के 27 प्रतिशत टी.बी. के मरीज़ थे। इसी वर्ष 4.5 लाख अर्थात 17 प्रतिशत लोगों की इससे मृत्यु हो गयी  लेकिन लॉकडाउन लगाकर ब्रितानी हुकूमत को लागू नहीं किया गया,  मीडियाबाज़ी नहीं हुईरोग फैलाने वालों का धर्म नहीं खोजा गया और इस रोग पर नफरत की राजनीति नहीं हुई।
इससे पहले कोरोना वायरस ने वर्ष 2002 में सार्स नाम से 29 देशों में महामारी फैलाया था। उसकी भी शुरुआत चीन से हुई थी। जिसमें कुल 8,096 लोग संक्रमित हुए और 810 लोग मारे गए। सर्वाधिक संक्रमण और मौतें चीन में हुई। भारत में कुल तीन संक्रमित मरीज़ ही पाए गए।
वर्ष 2009 में एच1एन1 वायरस से स्वाइन फ्लू  नामक महामारी ने 58  देशों में पाँव पसारे कुल 67,24,149  लोग संक्रमित हुए 19,654 लोगों की मौत हुई। इटली में सर्वाधिक संक्रमण हुआ और अमेरिका में सर्वाधिक मौतें  हुई। संक्रमण में भारत मध्यम क्रम पर था लेकिन मौतों के मामले में तीसरे स्थान पर रहा।
इसी एच1एनवायरस ने स्वाइन फ्लू  से 81 वर्ष पूर्व 1918 में स्पेनिश फ्लू नामक महामारी फैलाया था। एक अनुमान के अनुसार इसका उत्पति स्थान अमेरिका था। इस महामारी से 50 करोड़ लोग संक्रमित हुए और लगभग करोड़ लोग मारे गए। भारत में 1.5 करोड़ लोगों के मरने का अनुमान था।
किसी भी महामारी से निपटने के लिए विशेषज्ञदक्ष मानव संसाधनआकस्मिक सेवा,  चिकित्सा सुविधादवाएंटीकेँउपकरणबचाओ के उपाय और कुशल रणनीति की आवश्यकता पड़ती है। इस पूरी कार्य योजना को लागू करने और निरंतरता बनाये रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में धन और खाद्य सामाग्री अहम् है ।
अपने देश में कोरोना नियंत्रण में दूरगामी और व्यापक रणनीति का अभाव दिखा। इसके परिणामस्वरूप प्रवासी मज़दूर करोड़ों की संख्या में सड़कों पर उतर आये। चौतरफा लॉकडाउन की वजह से मात्र साठ दिनों में ही जनता और सरकार दोनों आर्थिक रूप से विपन्न हो गए और मज़बूरन सरकार को उस समय लॉकडाउन में छूट देना पड़ा जब उसकी वास्तविक ज़रुरत थी।
यह एक महामारी है ज़रूर ठीक होगी लेकिन इसके कुप्रबंधन से देश और यहाँ की जनता को जिस प्रकार की आर्थिकशारीरिकमानसिक और सामाजिक समस्या के साथ-साथ असुरक्षा बोध से पीड़ित रहना पड़ा है उससे निकलने में वर्षों लगेगा।   


रविन्द्र प्रताप सिंह 

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