करोड़ो की रैली में सिर्फ बयानबाजी

हुजै़फा
लखनऊ। लोकसभा चुनाव के परिणाम इसी माह आने वाले है। बयानबाजी चरम पर है कुछ नेताओ पर इस बयानबाजी को लेकर चुनाव आयोग ने बैन भी लगाया है। कोई अपनी सत्ता बचाने, कोई स्थापित करने और कोई सत्तारुढ़ पार्टी को अपना सहारा देने के लिये पूरी तैयारी से काम कर रही है। खुद को बेहरत और दूसरी पार्टी को कमतर साबित करने की हर चाल चली जा रही है। अपनी उपलब्धियों को बताते के लिये कार्यकर्ता जी तोड मेहनत कर रहे है। कोई पार्टी अपने घोषणा पत्र में किये गये वादों को आधार बना रही, कोई अपने विकास कार्यो को आधार मानकर तो कोई स्थायित्व का नारा देकर अपने लिये रणनीति तैयार का देश की शीर्ष सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही है। अधिकांश पार्टियों दूसरी पार्टियों की कमियां बताने में अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर रही है।
पार्टियां अपनी कमियों को छुपाना के लिये दूसरी पार्टी पर धर्मवाद। जातिवाद और साम्प्रदायिकता का आरोप लगा रही है। पार्टियां अपने शासनकाल को अपनी उपलब्धि बनाकर लोगों के सामने प्रस्तुत कर रही है। 
पार्टियां खुद को बेहतर साबित करने के लिये बयानों का सहारा ले रही हे। महारैलियों को आयोजित कर करोडों रुपये खर्च कर अपने विरोधियों की बातों और बयानों का जवाब दे रही है। एक रैली के जवाब में दूसरी रैली का आयोजन किया जा रहा है। जनता से जुड़े बुनियादी मुददों को नजरअंदाज कर पार्टियां किसी भी सूरत में खुद को बेहतर साबित करने का प्रयास कर रही है। पार्टियां रैलियों के माध्यम से भीड़ जुटाकर शक्ति प्रदर्शन करने में विश्वास कर रही है। घपटें- घोटालों को उछालकर अपने विरोधी को कम साबित करने का प्रयास हो रहा है। पार्टी कार्यकर्ता अपने नेता की बातों और बयानों को सही साबित करने के लिये अधिक से अधिक लोगों की भीड़ रैलियों में जुटाने का प्रयास कर रहे है।
पार्टियां काम और घोषणापत्र के मुददें को बयानों की राजनीति से पीछे छोड़ रही है। पार्टियोंं को मालूम होना चाहिए कि गरीब का पेट बयानों और दूसरे पर कीचड़ उछालने से नहीं भरता है। जनता को रोटी कपड़ा मकान और शिक्षा का अधिकार चाहिए वह भी शान्तिपूर्वक दुरुस्त कानून व्यवस्था और भय मुक्त समाज में। यदि यह जनता की आवश्यकताओं का निवारण पार्टियां करने का आश्वसान दे और चुनाव जीतने के बाद उस पर अमल करें तो इससे जनता को राहत मिलेगी। जनता को अपनी ओर बुलाने के लिये अब पार्टियों को काम भी करना होगा वह भी अपनी छवि सुधारने के साथ नहीं तो अब जनता मतदाता के रुप में जवाद देना जान चुकी, जनता की उपेक्षा पार्टियों को लोकसभा चुनावों में भारी पड़ सकती है। मतदाता अब मतदान में अपनी उपेक्षा करने वाली पार्टियों का गणित बिगाडने का दम भी रखती है।     

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