भारी जल संकट के लिये हम सब जिम्मेदार

हुज़ैफा

 लखनऊ। आज शहर हो या गांव हर जगह भीषण गर्मी ने जन-जीवन अस्त-वयस्त कर दिया हैँ। हर जगह बिजली और पानी के लिये हाहाकार मचा हुआ है। किन्तु इन संसाधनों के अत्याधिक दोहन और दुरुपयोग के लिये हम ही दोषी है। हमें अपनी इन धरोहरों को सहेज कर भविष्य की पीडियों के लिये आज से ही काम करना होगा। जल संकट का मुख्य कारण लगातार गिरता जल स्तर है। इस समस्या के लिये अभी तक जो सरकारी और प्राइवेट प्रयास किये गये व नाकाफी साबित हो रहे हे। लखनऊ सहित प्रदेश के सभी इलाकों में जल संकट से लोगों का जीना मोहाल हो रहा है। 

देश का सामान्य व विषिष्ट सभी नागरिक जल संकट का सामना कर रहे हैं। हमारे बौ़िद्धक और तकनीकी ज्ञान ने बढ़ती जनसंख्या को पानी पिलाने के नाम पर केवल जल शोषण के नये तरीके ही इजाद किये हैं। खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सिचाई के लिए नदियों और जलस्रोतों को न केवल खाली किया गया है, बल्कि उनके तकनीकी प्रबंधन के नाम पर नदियों में प्रदूषण, अतिक्रमण व बाजारीकरण कर उनका शोषण किया जा रहा है। परंपरागत प्रबंधन तकनीक और इंजीनियरिंग हमारी बढ़ी जनसंख्या के अनुरूप जलापूर्ति  कर सकती है। लेकिन 21वीं सदी की नयी व्यवस्था ने चंद लोभी, और लालची लोगों की जरूरत की ही भोगपूर्ति की है। यद्यपि समाज में सभी लालची व स्वार्थी नहीं होते है। लेकिन ठेकेदारों ने लोकतंत्र को अपनी पूर्ति का साधन बना लिया है। इसीलिए जल जैसे जीवन का निजीकरण होने लगा और लोकतांत्रिकीकरण के नाम पर ठेकेदारों को बढ़ावा मिला है। 21 वीं सदी के दूसरे दशक में पहुंचते-पहुंचते हमारी दो तिहाई 73 प्रतिशत नदिया सूख गई और 27 प्रतिशत नदियां प्रदूषित होकर नालों में तबदीन हो गयी। जिस कारण हमें घोर पेयजल का संकट का सामना करना पड़ रहा है। दुर्भाग्यवश जिसका समाधान केवल तकनीकी और विज्ञान के सहारे खोजा जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप शोषण करने वाला लाभकारी जल बाजार सामने आया है। लोकतांत्रिक भारत सरकार और राज्य सरकारें सभी पेयजल संकट का समाधान जल के बाजारीकरण में देखती हैं। 

ऐसे में न्यायपालिका आम जनता के हितों की संरक्षक बनकर सामने आयी है जिसने पारंपरिक और प्राकृतिक जलसा्रेतों के संरक्षण के लिए कई निर्णय दिये हैं लेकिन किसी भी स्तर पर सरकारों ने इन निर्णयों की पालना नहीं किया। यूपी के उच्च न्यायालय ने इस संदर्भ में अनेक निर्णय दिये, परन्तु उनका पालना नही हो रही है।

इस समस्या पर अगर गैर किया जाये तो हम पाते है कि इस ओर हर साल कई सम्मेलनों और कार्यशालाओं का आयोजन कर जल संरक्षण की बातें तो की जाती किेन्तु उनको मूर्त रुप से पूरा नहीं किया जा रहा समस्या कोई भी हो पर इसका अन्तिम खमियाजा तो आम जनता को भुगतना पड़ता है, जो पानी के लिये दर-दर भटकती और कुछ इलाको मेे तो भारी जल संकट से लडाईयां तक हो जाती है। दूषित पानी से शहर के कई इलाकों में हर साल संक्रमण,डायरिया आदि बीमारियोंं से लोगों को अपनी जान तक गवानी पड जाती है। इस समस्या के लिये हम सभी का सामूहिक प्रयास करना होगा।

Comments

Popular posts from this blog

फिक्की एफएलओ ने महिला उद्यमियों को सशक्त करने के लिए सिलीगुड़ी चैप्टर लांच

ब्लूस्टोन के 'बिग गोल्ड अपग्रेड' ने पुराने सोने के एक्सचेंज की बढ़ायी चमक!

बिरला फर्टिलिटी एंड आई. वी. एफ. को लखनऊ सेंटर में बेहतरीन क्लिनिकल परिणाम